कवि चैथजी बीठू, देषनोक

 

हरि रथ माठो होय, सगत रथ होय सयाणो

षिव रथ देवै पूठ, घटै उतराद पयाणो

हंस हाल पर हरै, बचन पलटै दुरवासा

मेह मोरां झड़ मंड, नॅह पूरै आषा

प्रहलाद भक्ति छाॅडै परी, कळू आय सत जुग कळै

सेवगाॅ तणंा मेहासदू साद न करनी संभळै । 34।

 

सीता छौडै़ सत, जत पिदमण सूं जावै

महाजोध हणुवन्तख् कळा बळहीण कहावै

नारद जुध निरखतां, तिको पण हाॅसी तज्जै

अन घृत मिष्ट अमाप, भूख जीमियां न भज्जै

जावै न त्रषां पीधां सुजळ, फिर कोऊ द्रुम ना फळै

सेवगां तणां मेहासदू साद न करनी संभळै। 35।

 

सोम अमी ना श्रवै, अरक मेटै न अॅधारो

इल पर आवै अबस, खीर सागर पण खारो

बेला ऋतू बसंत, फूल बन राय न फूलै

विषधर मिलै जॅह बास नां, टिकियो मेरू टळटळै

सेवगाॅ तणां मेहासदू, साद न करनी संभळै ।36।

 

अखै युधिष्टर आळ, अरक ऊगै पिछमाळै

ब्रह्म न बाॅचे वेद, पाप गंगा नहिं गाळै

डिगै गयण अण डोल, जोग तज बैठै शंकर

हार कंठ सिंणगार, भार गिण छाॅडै मिणधर

एतला थोक बरतै यला, जलण घीव होम न जळै

सेवगाॅ तणां मेहासदू, साद न करनी संभळै ।37।

 

दूध धेन नहॅ देय, रैण नह तारा राचै

गोरख छोडै ज्ञानख् सूर दे कलॅकज साचै

गंगा पाप न ग्रसे, धसै धर भारां मिणधर

धोंधीगर धुर धमल, कंध नह वाडै जूसर

अहि हरत गरूड़ संके अवस जुरा हूत शंकर जळै

सेवगाॅ तणां मेहासदू, साद न करनी संभळै। 38।

 

धसकै नीची धरा, शेष नहॅभार संभावै

बड़कै डाढ़ बराह, कमठ पण पीठ कचावै

ऊगै नहॅ आदीत, सी नथी पडै़ सियाळै

बाजै न ग्रीसम बाय, बृच्छ न हरबै बरसाळै

किल बेद झूठ बायक कहै, चरनो धन शंकर चळै

सेवगाॅ तणां मेहासदू, साद न करनल संभळै । 39।

 

धूणै माथो धवळ,  कमल जळ में कुमलावै

चमके चहुॅ दिस चपल, बिना बादळ बरसावै

नीर न चलै निवाण, सीर दरयावां सूकै

मिटै गॅभीर म्रजाद, तीर उत्तर धू चूकै

बैसाख जेठ लूनां विषम, घिरत न सूरज तप गळैै

सेवगाॅ तणां मेहासदू, साद न करनी संभळै। 40।

 

 

पंडित झूंठा पठण, गया गति प्रेत न पावै

मरे जो काषी माॅह, जीव षिव लोक न जावै

सती जती रिख सपत, साध बिगडै़ सत संगा

प्राछत घटै न पाप गयाॅ हर पैड़ी गंगा

हर हरप जिको लखिया हवै टाळा वै आखर टळै

सेवगाॅ तणां मेहासदू, साद न करनी संभळै । 41।

 

सुब्रन हुबै रंग ष्याम, उडै गिर पंखा आवै

तरन तजे सतेज, महण इक चळू समावै

सती तजै षिव संग, प्रीत जद हेतज तौड़ै

लोह रतन इक मोल जुड़ै, दुॅहु एकण जोडै़

तरू चनण महक तनरी तजै, जल सींच्यां ज्वाला जळै

सेवगाॅ तणां मेहासदू, साद न करनी संभळै । 42।

 

मंडल धू नह मॅडै, देख इन्द्राषन डोलै

सायर नंद रू सूर, तुलैता एकण तोलै

पुस्तक नाॅखै परा, पंडित सह वेद पुराणंा

भारत भ्रजाद जलि यो महण, चाड़ चैय इण पुल चळै

सेवगाॅ तणां मेहासदू, साद न करनी संभळै । 43।

 

पाथ तजै हरि प्रीत, नीत छोडै पॅडु नायक

उलटै गंग अपूठ, व्यास मुख झूॅठा बायक

है हर गवर कुहेत, सात दधि कूप समावै

उलट पडै़ असमान, धरा ऊॅचै पथ धावै

ब्रह्म न वेद बाॅचै वळे, मेळ अटल धू नॅहॅ मिळै

सेवगाॅ तणां मेहासदू, साद न करनी संभळै ।44।

 

माता मत मांॅगतां, कुमत मत आपो काई

साॅभळ मेहासदू अरज करनादे आई

मो सुत रा माईत, सदा पालक सुररांणी

तिषियांॅ भूखॅा तणी, करो चिन्ता किनियांणी

पव्वाॅणा ष्षुद्ध मोटा पणैं, बडा विरद यूं पाविये

चोथिये चाड सकत्याॅ  सहित, आवै करनी आविये।