मगंलाचरण

सुरसत सरधा सूं जपूं गणपत लागूं पाय ।

ईसर ईस अराधवा सदबुध करो सहाय ।।

पहलो नाम प्रमेस रो जिण जग मंडियो जोय ।

तीन भुवन चो रज्जियो सुफल करेसी सोय ।।

 

भगत बछल मो दै भगत भांज परा सह भ्रम्म ।

मुझ तणा क्रम मेटवा कथुं तुहाला क्रम्म ।।

लागु हू पहली लुळे पीताम्बर गुरु पाय ।

भेद महारस भागवत पायो जास पसाय ।।

 

आळीणो हरि नाम जाण अजांण जपे जो जीहंा ।

सास्तर वेद पुरांण सर्व मही तत अक्खर सारं ।।

तोरा हू पूरा तवे सकू केम समराथ ।

चत्रभुज सह थारा चरित निगम न जाणै नाथ ।।

 

कथुं केम इ्र्रसर कहै खाण सकल प्रत खेत ।

वयण श्रवण ना मन वसु निगम अगोचर नेत ।।

पीठ धरण-धर पटटड़ी हर उत लेखणहार ।

तोई तोरा चरिता तणोए परम न लाधे पार ।।

 

देव किसी उपमा दऊ ते षिरज्या सह कोय ।

तो सारिसो तूं हीज तूं अवर न दूजो होय।।

आभ विछूटा माणसां है धर झेलण हार।

धरणीधर धर छडिया एक तूझ आधार।।

 

जाळ टळे मन मळ जळे थावे निरमळ देह।

भाग हुवै तो भागवत साम्भळीयो श्रवणेह।।

हर हर करता हरख कर आळस मकर अंजाण

जीण पाणी सूं पिड रच पवन लपेटयो प्राण।।

 

हर बीसारे तू सूवै हर जागे तो कज्ज।

अे अपराधी आतमा औगुण अेह अलज्ज।।

हरि नाम पर हर अवर नह संभार अंजाण।

तरू छडी लागी लता पाथर  रैै गळ जांण।।

 

हर हर कर परहर अवर हररो नाम रतन्न।

पांचू पांडव तारीया कर दागीयो करन्न ।।

हर हर करता हरख कर अरै जीव अणबूझ।

पारस लाधो ओ प्रगट तन मानव मझ तूझ।।

 

अेरे नर परहर अवर हर हर सूमर हीयाह ।

संत सुदमा सारखा क्रोडी धज्ज कीयाह।।

वाणी हरि बीसार कर वाचै आण कुवाणं।

पत मत छंडी पापणी जार विलूबी जाण ।।

 

नर हर बीसरजै नहीं आतम मूढ अजांण।

काळ सकळ जग काटवा कस ऊभो केवाण।।

अवध नीर तन अंजळी, टपकत सास-उसास।

हरी भजन बिण जात है अवसर ईसर दास।।

 

मूढ मती तू हंस-मन कर हर-सर विसराम ।

मर-मर धर पर फर मति उर धर गिरधर नाम।।

नारायण भज रे नरा अतरजामी अेक।

साई जो सवळौ हुवै अवळा हुवो अनेक।।

 

नारायण रा नाम सू भरियो रह भरपुर ।

दामोदर नै दाखवै दम हिक करै न दूर।।

नारायण रा नाम सु  प्राणी कर लै प्रीत ।

ओघट बणिया आतमा चत्रभुज आसी चीत।।

 

नारायण रा नाम सु  लोक मरत जो लाज।

बूड़ेला बुध बायरा जल बीच छोड़ जाहज।।

नारायण रा नाम री मोड़ी पड़ी पीछाण ।

केइ दिन बाळापे गया के दिन गया अजांण।।

 

नारायण रा नामं सू , प्राणी वाणी पोय ।

जम डाणी  लागेे नही हाणी मूळ न होय।।

नारायण रो नाम नर नह लीधो नीरणाह।

वा जमवारो वोलीयो ज्यू   जंगल हरणाह।।

 

नारायण भजीयो नहीं भजीया अवर भजन्न।

ज्यां तजीया मानव जलम सझीया तन्न असन्न।।

नारायण न बीसारजै नीत प्रत लीजै नाम ।

जे लाधो मीनखा जलम , कीजै उतम काम।।

 

नारायण हो तुझ नमॅा , इण कारण हरी अज्ज ।

जीण दिन ओ जुग छडहां तीण दीन तोसू कज्ज।।

नारायण रो नाम तो भूडा ही भलवाण ।

चोपड़ीया चंगो थये जेहड़ो तेहड़ो खाण।।

 

नारायण नारायणा तारण तरण अहीर।

चारण हो हरी गुण चवां सागर भरीयो खीर ।।

नारायण नारायणा फेरा काटण  फन्द ।

चारण हो हरी गुण चवां सोनो अन्ने सुगन्ध।।

 

नाम समोवड़ को नहीं जप तप तीरथ जोग।

नामे पातक नासहीं नामे नासे रोग।।

अजामेळ जम दळ अगां विछूटो विखमी वार।

करते नारायण कहयो पूता हूत पुकार।।

 

वैद तणी वसावली कहो कि वाचण काम।

मिटै रोग आजम मरण निगम लियता नाम ।।

प्रभु भजता प्राणीया कीजै ढील न काय।

भर बत्था अथ काढजै , मंदर बळता माय।।

 

बोह न भूलू बापजी जे सिर छत्रजु होय।

कर जीहा लोयण श्रवण किसो सु आपै कोय।।

जीहा जप जगदीष्वर धर अतस में ध्यान।

करम बंध निकरम करण भव भाजण भगवान।।

 

राम जपता रे रिदा आळस म कर अजाण।

जे तू गुण  जाणे नही पूछ तु वेद पुराण।।

जद जागैै तद राम जप सूता राम सभार।

उठत बैठत आतमा चलता राम चितार।।

 

राम नाम रसणा रटो वासर वेर अवेर।

अटक्या पछे न आवसी राम तणी मुख रेर।।

राम भणता रे रिदा , कह केता गुण होय।

मानै ठाकर जंग नवै पिसण न गजै कोय।।

 

राम सजीवण मत्र रट वयणा राम विचार।

श्रवण राम गुण सुण सदा नयणा राम निहार।।

राम नाम रटतो रहे , आठू पोहर अखंड।

सुमिरण सा सोदा नही निरख देख नवखण्ड ।।

 

राम भणै भण राम भण अवरा राम भणाय।

जिण मुख राम न उच्चरे जा मुख लोह जड़ाय।।

राम सजीवण मत्र रट आमय लगै न अगं ।

जेता दुख है जगत में सुजि ओखद श्रीरंग।।

 

राम मात पित महत  गुरु राम सखा सुखदात।

राम सबधी बाधवा , राम सहोदर भ्रात।।

राम बिसारी क्यु रहयो रे मुरख मद अन्ध।

जिण दिन राम न जप्पियो वो दिन धुुुन्ध ।।

 

हिया म छंडै हरिभगत रसण म छंडे राम।

अतरजामी आपणो ठाकर है सह ठंाम।।

दाखै ईसरदासियो , कटक न होणा कीध।

राम राम रटता थका लक वभीसण लीध।।

 

रुड़ो करसी रामजी सह बाता श्रीरंग।

भगता पे भुधर धणी चाढण रुप सुचंग।।

जीह भणै भण जीह भण कंठ भणै भण कंठ।

मो मन लागो महमण , हीर पटोळै गंठ।।

 

चत्रभुज चरणां धार चित अलख अजोनी आख।

गोकुल गिरधर ग्यांन गह राम नाम मुख राख।।

सांई तू वड्डा धणी तूझ न वड्डा कोय।

तू जिन्ना सिर हाथ दे , सै जग वड्डा होय।।

 

साई सूं सै कुछ हुवै बंदा सू कछु नंाय।

राई सू परबत करै परबत राई मांय।।

आळसवां अज्जाणवां दिल खोटंतां दूर।

साहिब सांचां साधवा , है हाजरां हजूर।।

 

रहै विलंबे रामरस अलरस गिणे अलप्प।

अेह महाधू आतमा बे तीरथ अे तप्त।।

खुधा न भाजे पाणियां चखा न भाजे अन्न।

मूकत नही हर नांव बिन मानव साचै मन्न।।

 

नाम सुतीरथ नाम व्रत नाम सलोभो काम ।

अेको आखर ततफल जप जीहा श्री राम।।

आलम मोरा ओगणा साहिब तूझ गुणाह।

बूंद बिरक्खा रैत कण थाग न लाधेै ताह।।

 

दीह घणा माझळ दुनी रुळियो पेखण रुप।

माहव हिव प्रकास मो सिव ताहरो सरुप।।

न दे साद क्युं नाथजी साद दिये जो संत।

आपण नाम उलावता धेन ही कानं धरतं।।

 

मन पाखे ही महमहण चविये जीह चरित।

आतम पियां अंजाण ही अमर करै अमरत।।

राम भरोसो राखता आदण ईसरदास।

ऊकळता मंह ओरदै बंदा रख बिसवास।।

 

धारै तो साहब धणो करे विंलब न काय।

मार उपावे मेदनी मुहरत हेकण मांय।।

आतम व्हैसी अेकलो छुटत तन संगाथ।

साखी तिण दिन संखधर सुरग तणे पंथ साथ।।

 

भगतपाळ भगवंत भज धूपत रसणा धार।

चित निसदिन हर हर उचर सासो सास संभार।।

आठू पहर अनंत अत जप जीहा जगदीस।

केसव किसन किलांणकर अखिलनाथ कह ईस।।

 

पुरसोतम पूरण प्रभु राघव गिरधर रुप।

मुुरलीधर मोहन मुकंद भज लै त्रिभुवन भूप।।

बदरी टीकम परस बुध जग मोहन जैकार।

घणदाता आंनदघण श्रीपति स्त्रवणां धार।।

 

पलक निमिस नंहपांतरै दाखै दीनदयाल।

धरणीधर हिरदै धरै गावै गुण गोपाळ।।

केसव कह कह सूतरिये नहं सोइये निरधार।

रात दिवस के सुमिरने कबहुक लगै पुकार।।

 

मनसा डाकण माहरे राघव काढ रुदाह।

वन जिणमें केहर वसै त्रासे म्त्रगला ताह।।

 

ओ अवसर नंह आवसे ईसर आखै अेह।

पुण रै हरिरस प्राणिया जलम सुफल कर जेह।।

 

कल्प वेद सास्तर कथे सिध साधक सह कोय।

अन बिन त्रपत न उपजे हरि बिन मुगति न होय।।

सच्च पियारो सांइया  सांई सच्च सहाय।

साचां अगन न जाळही सच्चां सरप न खाय।।

 

भाग बडा तो राम भज देण जोग कछु देय।

अकल बडी उपकार कर  देह धरयां फळ अेह।।

वाव चलण लागै करण  सूरज सस खं लग्ग।

ईस जिकासू उपरै  कोय न जांणै मग्ग।।

 

चंदा सूं गयो चानणो  सूरज मंडल सोय।

जीव हरि रस जाचतां हरि सूं नातो होय।।

आतम आळस तज पहल ओळख आद विसन्न।

जेह मनोरथ मन झुरे  करत संपूर किसन्न।।

 

ते ओळेही हर तणा , जे नर नाम जपंत।

से जमरापर तज सहज  राधव सरण रहतं।।

राम जपंता राजश्री  राम भणंतां रिद्व।

राम नाम संभारतै  पामीजे नव निद्व।।

 

अेको नाम अनंत रो  पेलै पाप प्रचंड।

जव- तिल जेतौ जाळनळ खोण दहै वन-खंड।।

ओगण म्हारा आपजी  बगस गरीब नवाज।

जे कुळ पूत कपूत व्है  चहे पिता कुळ लाज।।

 

 

गुण अवतार नाम

ø देवी वंदन}

{गाथा}

रिध सिध दियण कोयला रांणी

बाळा बीजमंत्र ब्रहमाणी।

वयण दिये मो अविरळ वाणी

पुणू कीत जिम सारंगवाणी।।

{छंद बेअक्खरी}

ब्रखभ कपिल हैग्रीव विसंभर

दतात्री हरि हंस दामोदर।।

राव-बैकुठ धनंतर रिक्खभ

गरुडारुढ विसन प्रसणीग्रभ।।

 

मच्छ कच्छ वाराह महमहण

नारसिंह वामन नारायण ।।

दुज्ज-राम रघु-राम दमोदर

क्रसन बुद्व कलकी करुणाकर ।।

 

बद्री वासक व्यास वेदां-बण

परम निरंजन मुकति सद पावण।।

बळि अवतार तुं ही बळि बधण

भगत तणा धरिया दुख भंजण।।

 

जग अवतार नमो जगदीसर

अनंत रुप धारण तन ईसर।।

तवां ज हरि अवतार तुम्हारा

सदगत लहि छुटै संसारा।।

 

चवतां चरित तुम्हारा चेतन

जगत नहीं पुनरपि मानव जन।।

अकळ अजन्म अलेख अप्रंप्रम

क्रम मम कटै तूझ कथतां क्रम।।

 

माहरा अक्रम मेटवा माधव

क्रम हूं कथिस तुहाळा केसव।।

नाम तुम्हाळो हो!घणनामी

सास उसास संभारिस स्वामी।।

 

रात दिवस हरि हदै रखाविस

आठू पहर अनंत उल्लाविस।।

मांडे पूजा तूझ महणमथ

सकळ सरीर करिस इम सुक्रियथ।।

 

गलका सिला सिला गोमती

मांडे बे संगम मूरति।।

साळगराम सिला सुध सेवसि

अग्गर चंदण धूप उखेविस।।

 

अंनत उर आरती उतारिस

सोळ प्रकार पूज संभारिस ।।

भाव भगत करतो जग भावन

पतित सरीर करिस मम पावन।।

 

सुजळ ज्ञान मंजन तन सारिस

ध््राम क्रम जप तप नेम बधारिस।।

चरण पवित्त करिस इम चत्रभुज

त्रिगुणनाथ आवे आगळ तुझ।।

 

जंघा पवित करिस हूं जटधर

न्रत करतो आगळ नाटेसर।।

इंद्रियां पवित्त करिस अप्रप्रमं

दमै ग्यान तूझ दयता दम।।

 

नभ कंठ निपाप करिस नरहर

धारै मुद्रा तूझ संखधर।।

उदर पवित हु करिस अपरमंपर

चरणाम्त्रत तव लेय चक्रधर।।

 

पावन रिदो करिस पुरुसोतम

संचे नाम तूझ श्री संगम।।

मन हूं पवित्र करिस हरि मोरो

टीकम ग्यान धरे उर तोरो।।

 

कर दुय पवित करिस सेवा कर

जोङे तूझ आगळ जगत गर।।

 

पवित खंभ हू करिस अेण पर

अंक दिवाय संख चक ऊपर।।

 

निपाप कंध इम करिस नरहरि

नमें तुझ चरणें पूहकर नभ।।

कंठ इम पवित करिस करुणाकर

गावे तूझ चरित गोपीवर।।

 

मुख इम पवित करिस अघ मंजण

भखे प्रसाद तूझ दुख भंजण।।

रसण निपाप करिस इम राघव

भणे तुझ गूण तारण दधि भव।।

 

दसण निपाप करिस दमोदर

आणंद हंसे तूझ गिरि उद्धर।।

अधर पवित करिस अहिवारण

मुळके भगति प्रेम मधु मारण।।

 

वांणी पवित करिस सीतावर

नित प्रत क्रीत प्रकासे नरहर।।

नासा विसन करिस इम निरमळ

प्रभु घूंटे तव चरणां परमळ।।

 

नैण निपाप करिस नारायण

पेखि रुप तुझ भगत परायण।।

स्त्रवण पवित करिस इम स्वामी

गुण तुझ कथा सुणै घणनामी।।

 

भ्त्रकुटि पवित करिस विसम्भर

धारै चंदण गोपी धरणीधर।।

मस्तक पवित करिस मधु सूदन

वंदै तूझ चरण जुग वंदन।।

 

 

लिलाङ निपाप करुं लखमीवर

माथै चाढ तुल्सी तण मंजर।।

तुचा पवित करिस दसरथ तण

चरच विलेप करै हर चंदण।।

 

काय निपाप करिस इम केसव

दंडवत करी तूझ दईतां दव।।

रोम रोम तव नाम रखाविस।

इम करतो हरि चरणां आविस।।

 

मनसा वाचा क्रमणा माही ।

नरहर तो विण राखिस नाही।।

विसै संसार तणा विसारिस

श्रीरंग गुण थारा संभारिस।।

 

मैं म्हारी इन्द्रि सह माधा।

बळि उद्धार विसै तो बांधा।।

नाम नाव हू चढियो जगन्रप

रखे हिव डोलूं रावण रिप।।

 

करो कृपा तव सेवा कीजै

लिवरावो तव नाम ज लीजै।।

पखै रजा कोई चलण न पामै

भगत वछळ पङियो जग भामै।।

 

राज तणी इंछा रघुराया

अखिल चराचर जीव उपाया।।

राज अग्या म्हारै सिरराखिस

भूधर तूझ तणा गुण भाखिस।।

 

घण दीहां विछट्यो घणनामी

साथ तम्हीणो त्रिभुवन स्वामी।।

भमतो राख हमें जग भावन

प्रेम भगत दो त्रिभुवन पावन।।

 

किसन राख हिव हूं-तो करतो

धरणीधर ममता मन धरतो।।

तूझ विसै मति दे धू-तारण

कूप संसार काढ सब कारण।।

 

फेरा घणा भवोभव फरतो

माधव राख जनमतो मरतो।।

नरायण तो सम को नांही

मूर ही भवन हुकम चे माहीं।।

 

ओ संसार असार अनामी ।

सरणै साहब राखौ सामी।।

पाप करंतो मो मन पापी।

ताहरै नाम जाय सब तापी।।

 

त्रिभुवननाथ नहीें तव तोलै।

बांह गहो अब ईसर बोलै।।

 

बिण अपराध विटंबतो राखो त्रिभुवन राय।

कर कूडा सास्तर कथन कर कूडा क्रम कोय।।

अेह पटंतर दाख अब भगता वच्छळ ब्रहम।

कीधा अम के तम किया ,धुर हरि पाप धरम्म।ं।

 

ताहरी इछा दीध ते जीवा आदि जनम्म।

तित कित हूता अम तणा केसव किसा करम्म।।

 

आदि था सूंइ ऊपना जग जीवन सह जीव।

ऊंच नीच घर अवतरण , दी क्यू वंस दईव।।

 

औ पड़पंच अमाप रो तू करता त्रीकम्म।

आपो पै अळगौ रही ,केक भळावै क्रम्म।

 

आपो पै हंुता अनंत आपयो ते अवतार।

पाप धरम क्युं पीड़वा लाया जीवा लार।।

 

अखिल तु हीज के को अवर बहुनामी बुझ्झब।

लेखो नहीं लक्ष्मीपति सम्वड़ प्राणी स्रब्ब।।

 

आदि तणो ज®वंा अरथ भांजे में मुझ भरम्म।

पेहला जीव परोटिया किया के पेलंा क्रम्म।।

 

अकरम करम उपाय कर जागविया ते जीव।

जगपत को जाणे नहीं गत थारी हय ग्रीव।।

 

खाणी च्यार खोहण धरा जाया जिण दिन जंत।

किधा किण पाखे करम उत्तम मध्धम अंत।।

 

किधा कुण पुगे किसन वडा सामही वाद।

आदि न को तो बिण अनंत आतम करम न  आद।।

 

क्रमगत पुछा तो कनंा गोविंद हूंज गिंवार।

नाडे वसती डेडरी पूणे की समदा पार।।

 

केम हुओ इसर कहे किण जायो करतार।

ब्रहमा रुद्र विचार भ्रम नेहे जाणे निरंकार।।

 

छंद मोतीदाम

भ्रमाय विचारत इंद्र ब्रहम्म।

न पावत तोराय न पार निगम्म।।

प्रमेसर तोराय पाय पलोय।

कुराण पुराण न जाणत कोय।।

 

अधोखज अक्खर तुझ अभेव।

दिनकर चंद न जाणत देव।।

त्रणै-गुण तुझ न जाणत तंत।

अहीस सबद न जाणत अंत।।

 

वडा तत तुझ लहै न विचार।

परदर तुझ न पावत पार।।

भला मुनि तुझ न जाणत भेद।

विचित्रय तुझ म आखत भेद।।

 

दमोदर तुझ दसै दिगपाळ।

किताइक पार न जाणत काळ।।

उभै अणपार अगम्म अलेख।

लखम्मिय तुझ न जाणत लेख।।

 

महा तत तूझ न जाणत  माह।

कियो तुझ केण आयो तुय काह।

अनीलोय नील कहंत असेस।।

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

अलाह अथाह अग्राह अजीत ।

अमात अजात अजात अतीत।।

अरत अपीत असेत असेस।

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

अनक न संक धंक न धीस।

न वास न बास न आस न ईस।।

निराळ निकाळ त्रिकाळ नरेस।

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

अगम्म अछेह अपार अनोप।

अप्रम्म अलेख अगम्म अलोप।।

विराग न राग न वप्प न वेस।

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

कमाळ विसाळ भुपाळ किसन्न,

वडाळ भुजाळ उजाळ विसन्न ।।

मुणाल भुआळ छत्राळ महेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस ।।

 

निमूळ निसाख निरंजण नाथ,

सरज्जण भुवण तीन सम्राथ।।

मुनिगण सेवक सूर महेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

रहै रत ध्यांन अठच्यासी रिक्ख,

लहै नंह पार ब्रहम्मा लिख्ख।।

सहस्स मुखे जस भाखत सेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

कहै सनकादिक चारूंइ ऋीत,

पढै नित नारद धारिय प्रीत।।

सदा रत सेव खगेस सुरेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

अधोमुख ताप तपै मुनि-ईस,

रजो तम रंच धरै नहिं रीस।।

ध्रुव रवि चंद्र सुध्यान धरेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

सबे कुळ-मेरूय सात समंद,

उचारत नाम अहोनिस इंद।।

मुखां नित टेरत ब्रह्म महेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

गोरी सुत जाप जपंत गणैस,

सदा मुनि ध्यान धरै सिव सेस ।।

वंदे मुनि चारण देव विसेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

अभंग अथाह अपे्रय अरूप,

छछोह बदन्न मदन्न सरूप ।।

मुखां नह मेल्है सेस महेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

कथे सुर नाम त्रितीस करोड़,

जपै नर नाम उभै कर जोड।।

पयंपत वास पियाळ पुरेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

हुवा रिक्ख खोज अठासी हजार,

वंदै जस वेद छ सास्त्र विचार।।

धियावत किन्नर यक्ष धनेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

चारिय वाणिय खाणिय चार,

वंदै जग जीव विचार विचार।।

लहै नंह पार कछु लवलेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

उभै रवि चंद्र किया तैं उजैस,

रम्यौ अकळंक सदा तूं रमेस।।

दधि- भव तारण तूं दरवेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

अहोनिस काग भुसंड आराध,

पढै तब नाम सदा प्रहलाद।।

जपै सुकदेव जिसा जोगेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

चतुर्भुज दाखै वेद चियार,

बदै मुख सास्तर वैण विचार ।।

गावै जस नित सकत्त गणेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

सपत पयांळ न सात समंद,

दसै द्रगपाळ न चंद दुडिं़द।।

सुमेर न सेस पहल्लां सोज,

हुतो ज हुतो ज हुतो ज हुतो ज।।

 

प्रथि-पुड़ डाळ न आभ प्रचंड,

भलो काय लोक महा ब्रहमंड।।

अजै सिव आदिय पाण अलोज,

हुतो ज हुतो ज हुतो ज हुतो ज।।

 

जन्म न दम्म न जीव न जंत,

अकम्म न कम्म न आदि न अंत ।।

सुदेस महेस न सेसे सरोज,

हुतो ज हुतो ज हुतो ज हुतो ज।।

 

मेट मुरलोक पेठो जळ मांह,

तठे इक अंड निपायो तांह।।

कियो धर- अंबर बारिय कोज,

हुतो ज हुतो ज हुतो ज हुतो ज।।

 

नव ग्रह थापण थीर सुनाम,

धरे केउ लोक अलोकिक धाम।।

महादत मोख समापण मोज,

हुतो ज हुतो ज हुतो ज हुतो ज।।

 

अनंत पराक्रम तूझ अनंत,

नही तुव आदि नही तुव अंत।।

नही तुव रूप नही तुव रेख,

नहीं तुव वप्प नहीं तुव वेख।।

 

नही तोंय जात नहीं तोय जांण,

नहीं तोड पिंड नहीं तोय प्रांण।।

नही तोय सार नहीं तोय सुद्ध,

नहीं तोय बाळ नहीं तोय ब्रद्ध।।

 

नहीं तूं जोग नहीं तूं जाप,

नहीं तूं पुण्प नहीं तूं पाप।।

नहीं तूं ध्रम्म नहीं तूं धाम,

नहीं तंू कं्रम्म नहीं तूं काम।।

 

नहीं तूं जीव नहीं तूं जम्म,

नहीं तूं देह नहीं तूं दम्म।।

नहीं तूं नार नहीं तूं नाह,

नहीं तूं धूप नहीं तूं छांह।।

 

नहीं तूं ठोड़ नहीं तूं ठांम,

नहीं तूं गोठ नहीं तूं गांम।।

नहीं तूं अन्न नहीं तूं आस,

नहीं तूं वन्न नहीं तूं वास।।

 

नहीं तो नैण नहीं तोय नास,

नहीं तूं स्त्रम्म नहीं तूं सास।।

नहीं तूं भ्रम्म नहीं तूं भास,

नहीं तूं अंध नहीं तूं जास।।

 

नहीं तूं गुज्ज नहीं तूं ग्यान

नहीं तूं दुज्ज नहीं तूं दंान ।।

नहीं तूं जींव नहीं तूं   जंत ,

नहीं तूं आदि नहीं तूं अंत ।।

 

नहीं तूं काळ नहीं तूं क्रमम,

नहीं तूं ब्याळ नहीं तूं ब्रह्म।।

नहीं तूं देव नहीं तूं दैत,

नहीं तूं भेव नहीं तूं भैत।।

 

नहीं तूं विप्र नहीं तूं वैस,

नहीं तूं खत्रिय सुद्र न खैस।।

नहीं तूं मूळ नहीं तूं डाळ,

नहीं तूं पत्र नहीं तूं पराळ।।

 

नहीं तूं बाळ न ब्रद्ध न मूळ,

नहीं तूं थावर सुक्खम थूळ।।

नहीं तूं जीव चराचर जेथ,

नहीं तूं मंत्र न तंत्र न तेथ।।

 

नहीं तूं दीह नहीं तूं रात,

नहीं तूं भ्रात नहीं तुव जात।।

नहीं तोय जांण पिछांण जमार,

नहीं तोय साख संबंध संसार।।

 

नहीं तुव वित नहीं तुव वांण,

नहीं तुव खेत नहीं तुव खंाण।।

नहीं तुव नार पुरक्ख सनेह,

नहीं तुव दीरघ सुक्खम देह।।

 

प्रथी  अप तेज अनील अकास,

नहीं तुझ सुन्न असुन्न निवास।।

प्रमेसर प्रांण-पुरक्ख प्रधांन,

गरब्भ जगत वेदांत गिनान।।


नहीं तोय मात नहीं तोय बाप,

आपेज आपे ज उपन्नो आप।।

मनच्छा बीज चलावे मूळ,

थयांे चर बेचर सुक्खम थूळ।।

 

विराट आकार निपाविय रूख,

दुई फळ जेण किया सुख दुक्ख।।

निपाविय रूप उभै नर नार

वधारिय जग्ग तणौ विसतार।।

 

किधो इके जीव किधो इक क्रम,

धरे इक पाप धरे इक ध्रम्म।।

सरज्जिय आप त्रिवीध संसार,

हुवो मज्झ आपज रम्मणहार।।

 

घडे सह आपज हूंता घाट,

बणाविय विस्व कियो वैराट।।

किताइक वार ब्रहम्माय कीध,

लीला अवतार किता तैं लीध।।

 

विसव्व निपाय कितीइक बार,

ब्रहम्मा हाथ दियो बोपार।।

आपोपिय इच्छा आप अलक्ख,

लिया अवतार चैरासीय लक्ख।।

 

हुवो दिग-मूढ ब्रहम्मा देख,

अजप्प्पा राखव रूप अलेख।।

सनक सनसतन भ्रात सुरीत,

चिताया ब्रह्मा हंस चरित।।

 

माया सब  सांवट बाळ मुकंद,

सूतो वड़-पांन समाध समंद।।

उपन्नाय दानव दोय अजीत,

भाजै सह देव हुय भैभीत।।

 

पइट्ठा आण तुहाळी ज पूठ,

उबार बिसन्न कहै सुर ऊठ।।

प्रमेसर सांभळ देव पुकार,

विधूं सण सज्ज हुवो तिण बार।।

 

बिहा ई झोलिय हेकण बाथ,

निरोहर मांय कियो जुध नाथ।।

बिहूं मधु कीट जसा बळ बुद्ध,

जीत्या तैं दानव बाहुव-जुद्ध।।

 

दईतां आगळ देव दतार,

वचाविय देव किताइक वार।।

करेवा देव तणां केई कांम,

रयौ बिच देत महाजळ रांम।।

महागिड़ पैठ महाजळ मज्झ,

किता जुध कीध प्रथम्मी कज्ज।।

प्रथम्मीय जाती रेस पयळ,

दाढां गह राखीय दीन-दयाल।।

 

रखी धर वार किता तैं राम,

सझे हिरणाख विखे संग्राम।।

आकासे वार किता तैं आय,

विधू सिय त्रिपुर अम्त्रत वाव।।

वेदां राय वा’र करी कई बार,

सझे जुध कीध दईत संहार।।

विमोहिय रूप अगाध बणाय,

जटाधर काज दईत जळाय।।

 

किता तैं वार विखै कळपंत,

बांधी ले संग प्रथी बळवंत।।

हलाविय कैतिक बार हमल्ल,

मथ्यो महराणव हेकल-मल्ल।।


किता तैं वार लिया क्रिसन्न,

रिणायर रोळिय चउद रतन्न।।

मथ्यो तैं वार किता महरांण,

सुरा लिय अम्त्रत दीध सुजांण।।

 

दळै केई वार वडाळ दईत,

इंद्रापुर दीधोय सक्र अजीत।।

हणै नख वार किता हरणक्ख,

भवानीय भेरव दीधा भक्ख।।

 

पाळे पख बार किता वरदान,

सुणंतां सेवक आरत साव।।

दिया तैं वार किता वरदान,

थपे धू राजस अच्चळ थांन।।

पुकारां संत सुणै प्रतपाल,

दौडै़ उठ आतुर दीन दयाळ।।

रांखै तै वार किता गजराज,

महाबळि ग्राह हणै महाराज।।

 

दबा बळि वामन लीधो दांन,

उभै कर पैंड जमीं असमांन।।

बांधे तैं वार किता बळराव,

वगोविय दांणव कीध वणाव।।

 

भेदे तैं बार किता भूगोळ,

करंती आंणी गंग किलोळ।।

किताइक वार नरां सुख कीध,

दया कर देव त्रिविस्टप दीध।।

 

हुवा असुरांण तणा हलकार,

पुणे जमदग्गन मुक्ख पुकार।।

आयो केई बार फरस्स उपार,

सहस्सरबाहुव सैन संहार।।

 

खत्री बंस वार किताइक खेस,

रेणा लिय दीधी विप्रां रेस।।

जिपै तैं वार किता बळि जंग,

रखावण तात जनेताय रंग।।

 

धरे नर देह अजोध्या धांम,

राजा दसरथ्थ तणै घर रांम।।

बिहूं रघुवीर सोमित्र बुलाय,

सजै जग विस्वामिंत्र सहाय।।

 

सुबाहु मरीच ताड़िका संघार,

महारिख कीध निसंक मूरार।।

जनक्क तणै बळ आविय ज्याग,

भंग्यो धनु भीम भला सिय भाग।।

कियौ त्रय खंड भूतेस को दंड,

बेटो दसरथ्थ तणौ बळ-बंड।।

आयौ दिखं कोप स्त्रवंत अंगार,

तजै बळ चाप हुऔ दुज त्यार।।

 

व्हियौ वर व्याव उछाव विसेस,

धायै जंह देव दिनेस धनेस।।

कैकय मंथर कुबध किधैव,

सिया वन रांम लखण सिधेव।।

 

महा दिय मान करी गुह मीत,

तारै सिळ कीर कुटंब सहीत।।

विडरूप कीध सुपनखिय वन्न,

तदै खर-दूख वछोड़िय तन्न।।

 

हरी महम्माय धरयौ छळ-हाव,

मिळै हणवंत महाबळ माव।।

बिंधै सत ताड़ पमै कपि बोध,

जदै बिहुं भ्त्रात भिडै़ महा जोध।।

 

कियो कपि मिंत सुग्रीव सुकाज,

रहच्चे बाळि स किसकंध राज।।

उपाड़ बिगाड़ै समदा ओड़,

कहे सोई जोजन दंुद किरोड़।।


धरी दध पाज पहाड़ां धार,

पदम्म अढार उतारिय पार।।

पड़यौ जद आय वभीखण पाय,

लियौ तद राघव कंठ लगाय।।

 

उगार बभीखण कीध अभीत,

दीध्ी तैं लंक अलीध अदीत।।

लियौ तैं वार किता गढ लंक,

संघारिय कुंभ मनाड़ै संक।।

जिपै तैं वार किता इंद्र जीत,

संघारिय दैंत बहोड़िय सीत।।

दळै तैं वार किता दसकंध,

बांध्यौ दध देवां छोडण बंध।।

 

मारे तैं वार किता मकराख,

सानुज्ज उबारे बेदां साख।।

बिखो ब्रज मांय पड़’ती बार,

धरै नख वार किता गिर धार।।

 

वजाड़े तु वार किताइक वंस,

किता तैं फेराय जीत्यो कंस।।

रजा उग्रसेण सम्मपै राज,

करे जदुवंस तणा सिध काज।।

 

किता वर पांडवा ऊपर कीध,

लाखाग्रह कंुतां काढे लीध।।

दुसासण द्रोण गंगेव द्रजोण,

खपै कुरखेत अढार अखोण।।

 

किता तैं सेवग सारण काज,

रच्यौ हथणापुर पंडव राज।।

जळा चख जाळण काळ-जवन्न,

कियो मुचकंद निमित्त किसन्न।।

 

बाणासुर छेद भुजा बळवत,

कीधी जग जीत लिछम्मी कंत।।

धरे तुय वार किता हर ध्यांन,

ग्रहावण लोक अनोअन ग्यांन।।

 

भिदै केई वार असुर अभंग,

जुगो जुग कीध कीताइक जंग।।

दुनीचा-काळ भुजाळ दईत,

जिके दळ सज्ज उभै द्रह जीत।।

गुवाळां सेत रखी तैं गाय,

महादुख हूंत छुडाविय माय।।

जळं तांय उत्तरा ग्रभ्भ मंझार,

अनंत परीखत संत उगार।।

 

निरभ्भय कीन अभैमन नार,

मिलाविय गोप बकासुर मार।।

जिवाड़ै नार तणी जयदेव,

गहे चक पत्त रखै गंगेव।।

 

पचाळिय साभळ दीन पुकार,

बचाविय लाज विखम्मी वार।।

सपुरै थान इको न सहस्स,

रमापत तोर अभुत रहस्स।।

 

वछोड़िय रुद्र कपाळ ब्रहम्म,

किधो सूकदेव अतीत करम्म।।

उगारै स्राप थका अमरीख,

सदा किय सेवग आप सरीख।।

 

असख्या तूझ तणा अवतार,

ब्रहम्मा रुद्र लहै न विचार ।।

नमो सनकादिक स्याम सरीर,

नमो वय पंच ब्रखे चत्र वीर।।

 

नमो मही साह वराह समत्थ,

नमो हरणाक्ख हते निज हत्थ।।

नमो मछ स्रग मडाण मुकद,

नमो कळि रास दैत निकंद।।

 

नमो हैग्रीव निगम्म सहेत,

नमो खळमार हयानन खेत।।

नमो बिध वेद समापण विध्ध,

नमो सुर काज करे हर सिद्ध।।

 

नमो तन हंस त्रिलोकी तात,

नमो बिध गयानं सुणावाण बात।।

नमो प्रहलाद उबारण प्रम्म,

नमो म्रम-कासव मारण म्रम्म।।

 

नमो कमठाधर रूप सकाय,

नमो मंदराचल पीठ भ्रमाय।।

नमो हरि आप धनतरं होय,

नमो सब रोग निवारण सोय।।

 

नमो ध्रम-विसंधर धार,

नमो मध व्यापक सोय मुरार।।

नमो बळि-बंधण रूप बावन्न,

नमो भर तीन पगां त्रिभुवन्न।।

 

नमो त्रय-रूप दतात्रय देव,

नमो जप-तप्प धियांन अजेव।।

नमो जग-आद-पुरक्ख जगीस,

नमो अवतार असंख अधीस।।

 

नमो नर नारण जोग निवास,

नमो दुख मेट उधारण दास।।

नमो गज तारण मारण ग्राह,

नमो व्रज काज सुधारण वाह।।

 

नमो धर ध्यानं रिदे हर धार,

नमो मनसा धुव-पूर मुरार।।

नमो पुन भूपत प्रत्थ पुनीत,

नमो अवनी अघ मेट अनीत।।

 

नमो रिख तापस रूप रिखंभ,

नमो अवतार उदार असंभ।।

नमो कपिलेसर दिष्ट करूर,

नमो सुत स्त्रग जळावण सूर।।

 

नमो रिख जामदगन्न सुरीस,

नमो किय वार नछत्री इकीस।।

नमों रण रांवण मारण रांम,

नमो किय सिद्ध वभीखध कांम।।

 

नमो कन्ह रूप निकंदण कंस,

नमो ब्रजराज नमो जदु वसं।।

नमो प्रम संत गऊ प्रतपाळ,

नमो दुसटां दळ दीन दयाळ।।

 

नमो भव बुद्ध भये भगवांन,

नमो ग्रहि जीव दया उर ग्यांन।।

नमो बचि व्यास निगम्म वखांण,

नमो पह कीध अढार पुरांण।।

 

नमो इळ मेटण पाप अपार,

नमो बरताविय सतजुग बार।।

नमो निकळं किय नाथ नरेह,

नमो कळि काळख नास करेह।।

 

नमो अवतार अनंत अपार,

नमो पढ सेस लहै नहिं पार।।

नमो अतुळी बळ तात अनंग,

नमो निरवांण नमो निरलंग।।

 

नमो पति सूरज कोटि प्रकास,

नमो वन माळिय लील विलास।।

नमो लख कंद्रप लावण तन्न,

नमो मनमोहन रूप मदन्न।।

 

वदन्न हुलासत नेत्र विलास,

मुगट किरीट अखै गळ माल।।

वसन्न सुपीत वपु घन वांन,

कुंडल मकराकत सोभत कांन।।

 

उभे कर दुण आबद असख

सारगं पदम्म गदा चक संख।।

नमो पंच व्रन्न परम्म पुनीत,

सितासित नील सुरत सुपीत।।

 

सहस्त्र विभुत वियापक स्रव्व,

दुवादस अगुळं गात दिपव्व।।

जदुकुल नायक सामिय जग्ग,

पदम्म पताक अलकत पग्ग।।

 

पंगा री रेण धरे सिर प्रम्म,

धियावै पग्ग अहोनिस ध्रम्म।।

पूजै पद पंकज कमला पाणि,

उदक्क चढावै गंगा आणि।।

 

पखाळत तीरथ अड़सठ पग्ग,

इद्रादिक देव करत ओळग।।

तळोसै पग्ग नवै निध तम्म,

महासिध साधक जांणत म्रम्म।।

 

महातम जांणत ब्रहम महेस,

सदा पग आगळ लोटत सेस।।

गुणा नित अस्तुत करत गणेस,

पगां रिख लाग करै निज पेस।।

 

पगां हणमत करत प्रणाम,

सोह पग आगळ कातकसाम।।

पगा तळ मंडत सीस प्रयाग,

वसै पग आगल ग्ंयान विराग।।

पगा विदया सह जोड़ै पाण,

वळे पग तव खट भाख वखाण।।

आगे पग राज खळक्क उदद्ध,

गरज्ज पगा रज मोटा ग्रद्ध।।

 

पियै पग - रस्स ब्रहम्मा-पूत,

अमीय सुरंभ लिवै अवधूत।।

पूजै पग विम्मल वेद पुराण,

अळीयळ नाथ लिये अघ्राण।।

 

लिखम्मी पग्ग धरै उर लेह,

बुधी सिधि पग्ग तळै रह बेह।।

रमै पग - छांह मधूकर रिक्ख,

तकै पग नाग सरीसा तक्ख।।

 

पगां भणि सिंध्ुव साात पियाळ,

मेल्है पग अग्गि मुताहळ माळ।।

सुहै पग छांह सातू- रिख-स्यांम,

रंजे पग छांह जिसा बळराम।।

 

सेवै तुझ पांव सदामद सक्क,

इळा पग छांह मयंक अरक्क।।

सेवै तुझ पांव समंदर सात,

निरंजण पांव नमो निरगात।।

 

जपै पग गोतम गर्ग जमन्न,

कपिल्ल कणाद कहे करमन्न।।

पतंजळ व्यास जुड़ै नित पाण,

वदै पग द्रोण नारद वखांण।।

 

जपै पग वासिठ जांमदगन्न,

महा वलमीक सनक्क मगन्न।।

परासर वाखिला पद सेव,

अस्टावक अत्रि जांणै अस भेव।।

 

विस्वामिंत कासप गरूड़ विमेक,

अठासी हजार अखै मन अेेक।।

सेवै पग जन्नक सन्नक सूर,

अभे मन ओधव ओ अकरूर।।

 

जुजठळ भीम करै पग जाप,

अर्पे पग नीर अरज्जुण आप।।

देखै पग छांह रहै सहदेव,

सदादि नकूल करै पग सेव।।

 

जपै पग कोट-छपन्न-जदूव,

वंदै सुकदेव जसा विसनूव।।

पगां बिहुं-राह करंत प्रयांण,

सेवै पद कंज सन्यासि सयांण।।

 

प्रणम्मै पग्ग परम्म प्रवीत,

सावत्री गौरि गायत्री सीत।।

सेवे पग चारण किन्नर सिद्ध,

वदै पग रा जस वंस विसुद्ध।।

 

जुहारै पग्ग जिसा जयदेव,

सेवग्ग अनेक करै पग सेव।।

हुवै पग छांह सदा हर हार,

सोहै पग छांह सुव्रक्ख संसार।।

 

सेवै पग छांह विबुध्ध समाज,

रहै पग छांह वड़ा बळिराज।।

चरच्चै पग्ग निरम्मळ चंद,

दियै पग वंदन देव दुड़इंद।।

 

तळै पग छांह नवग्रह तांम,

पगां दिगपाळ करंत प्रणाम।।

वडा पग नित वदै दरवेस,

देखै पग देव करै आदेस।।

उळग्गत पांव धरम्म अलक्ख,

चहै पग गोरख आतुर चक्ख।।

अळू झत पांव विरक्त अमांण,

सेवै पग राउर दास सुजांण।।

 

आवै पग ओळग छांह अलाह,

लियै पग छांह तणा फळ लाह।।

अछै पग छांहजिसा कुळ सात,

प्रणम्मै पग्ग सरग्गम सात।।

 

पगां सब वंदई जोड़त पांण,

भुवन्न-चऊद जपै पग भांण।।

वडा जोगिन्द्र वंछै पग वास,

तुुहाळा पग्ग न मेल्हूं तास।।

 

अहिल्या रेस दियो तै अंग,

सरीर कुबज्जाय कीध सुचंग।।

दीधी नळ कूबड़ उतम देह,

न भांग्यो नागण- नाग सनेह।।

 

अखंा उपमा नख कोट अरक्क,

सम्राथ सरज्जण भंजण सक्क।।

इके खिण मांझ भंजै धर आभ,

निपाय अधेखिण पदम नाभ।।

 

परम्मल कम्मळ सद्रस पग्ग,

निधान परम्म निवारण न्रग्ग।।

जटाधर वंछै दैंत जळाय,

विमोहे रूप असाध बणाय।।

 

इसा पग तूझ तणाह उदार,

सेवंतां पाप टळै संसार।।

म ठैल म ठेल पंगा सूं मूझ,

त्रिविक्रम नाथ अनाथंह तूझ।।

 

पदारथ लाधोय तू ज परब्ब,

सुत्रां जिम तांणा-वांणाय स्रब्ब।।

पुरांण स प्रभ्भ वंचाणाय पत्र,

जगत्पति तूु हीज तूु ज जगत।।

 

जगतिय जातिय - पांतिय जांण,

प्रछन्न हुवो तउ दीठोय प्रंाण।।

दीठो प्रभ आतम आपहि दाख,

भुवन नहीं जिण ठोड़ स भाख।।

 

छुटो थयो माहव घूंघट छोड़,

ठयो तूं ठावो ठाविय ठोड़।।

मुणां किथ जाग असी जग मूर,

नहीं जिण मांझ तुहारोय नूर।।

 

जळा-थळ थावर जंगम जोय,

कठै हरि तूझ पखै नहीं कोय।।

मकोड़िय कीट पतंग मुणाल,

भिखंग तु हीज तु हीज भुआळ।।

 

सबै भरपूर रह्îो घनस्यांम,

रमै घट मांझ सदा तुहि राम।।

हरि तू वणाविय बाजिय हद,

बाजीगर तूझ बडोय बिहद।।

 

अछैै स्त्रब मांझ तु आप अलूझ,

गोविन्द तुहाळो लाधोय गूझ।।

मुकंद म पैठ पड़दा मांय,

ठावो हों कीध सबें हिय ठांय।।

 

सबै असथांन हों देखत सांइ,

मांणस देवत नागांय मांहि।।

इंडज स्वदेज जरा उदभज्ज,

माया सब तूझ म भूलव मुज्ज।।

 

सुरत तु हीज तू हीज सबद,

मरद-मंहलाय आप मरद।।

क्रतांत तूं क्रत क्रीड़ा तुय कंाम,

रमाड़ म पग्ग लाधो हिव रांम।।

 

दातार मुगत अणंकल देव,

सालोक सामीप सारूप सामेव।।

सदानन्द दाताह नाम सहस्स,

रघूपत भक्ति सु अमृत रस्स।।

 

भगत अधीन मुगति - भंडार,

टगोचर वेद ब्रहम्म उचार।।

निरजंणनाथ नमो निरवाण,

किसन्न महाघण रूप कल्याण।।

 

विधो विध दीठोय मांझ विभूत,

धुताइय छोड परी सब धूत।।

म राख पड़दो आडोय मूझ,

जित निरखूं तित दाखव तूझ।।

 

प्रभु तूं पांणिय तूं ज पवन्न,

गरज्जत भोम पियाळ गगन्न।।

इळा त्रय तूं ज उडीयण अभ्भ,

पनंगां मेघांय मांहि परभ्भ।।

 

रमै तूं राम जुवा धरि रंग,

तु हीज समंद तुं हीज तरंग।।

अणु परमांणु तिहारोय अंस,

हिवै म छपाय छतो थई हंसं।।

 

जाण्यो हिव ओझळ छोड जीवन,

पेखां तुव डाळा साखाय पन्न।।

अजांणां आगळ रे तूं अजांण,

जांणीता पास नको छिप जांण।।

 

लगाड़ गळै जनि अंतर लाय,

वहे जिम वाय तक  मत वाय।।

वसीकर सब्ब तुहाराय वेस,

नहीं तू जेथ स दाखव नेस।।

 

लख्यो हिव रूप पड़दो न लाय,

मुरार परतख्ख बाहर मांय।।

ठगाराय ठाकर हेकट थीय,

पड़दोय नांख परो हिव पीव।।

 

जोयो मैं राम विमासी जेम,

तनां घट भीतर दीठो तेम।।

गळ गयो भ्रम छुटी मन गंठ,

करो हरि वात लगाड़िय कंठ।।

 

त्रिणों ही न आडो देखूं तूझ,

मुखामुख  सेव करावो मूझ।।

त्रिभंगिय हेक हुआ तुम्ह-हम्म,

प्रपोटाय अंब तणा पर-प्रम्म।।

 

हुवा इम सांमिय सेवक हेक,

ओळक्खिय अंतर अेक अनेक।।

थयो हिव हेक जुवो किम थाय,

मिळगो पांणीय पांणीय मंाय।।

 

समांणो तूझ मंही घनस्याम,

राघव महारोय आतमरांम।।

महारोय ठाकर बैठोज मांहि,

पुजावत आपुय आपुज पाहि।।

 

गाजे ग्रह मांझल बैठो मुज्झ,

पुजारा सु पंच चढावै पुज्ज।।

सबै मझ तू तुमां मझ सब्ब,

उपज्जत जेम सु अंबुद अब्ब।।

 

कहै जिम कंथ करां वह कांम,

रिदा मझ लाधो तू आतमराम।।

नजीक ज पायो मोराय नाथ,

स्वामी हव तूझ न छोडांय साथ।।

 

न मेल्हुं तूझ तणो हरि नांम,

बिसन्न भगत तणां विसरांम।।

परम्म निवास निवारण पाप,

जोगेसर भद्र अजप्पाय जाप।।

 

प्रगट्टे गयांन तोरा जंह प्रम्म,

भगै मद मम्मत छूटत भ्रम्म।।

आखंतां नाम टळै दुख ओघ,

उपज्जै आणंद चित अमोघ।।

 

तवे हरि नांम अहोनिस तम्म,

जरातंक काळ न व्यापत जम्म।।

भजै हरि नांम टळै मन भ्रम्म,

कथै हरि नांम जळै तन क्रम्म।।

 

रटै तव ना मिटै दुख रोर,

जरामय पाप न लागत जोर।।

जपै तव नांम अहोनिस जीह,

संसार तिकां नंह खावत सीह।।

 

रटै तव नांम व्रंदावन राव,

तिकां मन कांम न व्यापत ताव।।

करै हरि हेत तुम्हीणी क्रीत,

चिंतां त्यां मूळ न लागत चीत।।

 

रटै तव नांम सदा óी रंग,

भखे नंह ताहि संसार भुजंग।।

रखै तब नांम तणी अत रीझ,

वळै धख त्यांह न मारै वीज।।

 

रते तुव नांम रहै रहमांण,

जिकां नंह सांसा आवण-जांण।।

जिको हरि पाय लग्यो रह जाय,

तिलो भर मोह न लोपत ताय।।

 

वदे तुव नांम लखम्मण वीर,

नरां पिंड-घात हुवै नंह नीर।।

दाखै तुव नांम सु अक्खर दोय,

नैड़ो रह प्रंाण नियारो न होय।।

 

चत्रभुज नांम धरैै तुव चित,

नव निध-सिध मिळै त्यां नित।।

रूचै तव नांम जिके घण रूप,

कदे न पड़ै नर सो भव-कूप।।

 

मुरार तूं आय बसे जाहि मन्न,

दहे नंह ताहि संसार दवन्न।।

जपै हरि तोरा जाप जिकाह,

टळै भव बंधन पाप तिकाह।।

 

भणै गुण तोर लच्छि भरतार,

लगै न तिकां मन पाप लगार।।

मुकंद तूं आय बसै जाहि मुक्ख,

संसार समंद तरे वह सुक्ख।।

 

ओळख्खे राम ज आप ही आप,

विखै तन पंच सकै न वियाप।।

भजै तव नांम जिका भगवान,

खपे ताहि पाप त्रिखा खय मांन।।

 

निरजंण नाथ नमो निकळंक,

कळंकिय टाळण साध कळंक।।

नमो बोहनामी माधव बुद्ध,

सेवक्क सधार सदा सिव सुद्ध।।

 

नमो स्रब कारण सारण स्यांम,

उबारण गोकळ इन्द्र उदाम।।

नमो जग-वंदन जीवण नंद,

महाविख नाग उतारण मंद।।

 

नमो मुर मेघ मरदण मल्ल,

संखासुर काल बकासुर सल्ल।।

मनों कंस- केसि विधूंसण कन्ह,

रूक्मण प्रांण पुरक्ख रतन्न।।

 

नमो प्रमहंस सरोवर प्रेम,

निरम्मल गोकलनाथ नगेम।।

नमो भगतां वस गो-भरतार,

विसन्न बिं्रदावन लील विहार।।

 

नमो निकळंक नमो निरसंक,

नमो सुख साध समंद मयंक।।

नमो सिसपाळ मनावण संक,

जरासंध देवण सेन उजंक।।

 

नमो हयग्रीव निगम्म निखात,

बडा कवि ब्रह्म वदै बड बात।।

नमो प्रथु रूप प्रताप पुरूक्ख,

नमो वर लाछ परम्म विरक्ख।।

 

नमो अवधूत उदास अलक्ख,

नमो गूरदत गिनांन गोरक्ख।।

नमो विगनांन गिनांन विखंभ,

थांमै आभ प्रथी विण थंभ।।

 

नमो वर-सीत त्रिभूवण वंद,

नमो मधु कीटभ जीत मुकंद।।

नमो विध लाधण मेटण व्याध,

सराप भसम्म उतारण साध।।

 

नमो धरणीधर धारण धीर,

नमो भवतारण भंजण भीर।।

नमो अवगत नमो अकळीस,

नमो अपरम्म नमो सब ईस।।

 

नमो हरिरस्स नमो हरिहंस,

नमो हरि कान्ह नमो अरि-कंस।।

नमो हरिदेव नमो हरि नांम,

नमो हरि रूप नमो हरि रांम।।

 

नमो ओऽम रूप नमो ओंकार,

नमो अजरामर सेस अधार।।

नमो अवतार सकाज अधीस,

नमो जगताज नमो जगदीस।।

 

नमो अण-आंमय जोत अखंड,

नमो वप कोट वसै ब्रहमंड।।

नमो अंग आणंद रूप अतीत,

नमो अवधूत अक्रम्म अजीत।।

 

नमो मधुसूदन देवण मोख,

नमो दत देव विडारण दोख।।

नमो प्रहलाद उतारण पार,

नमो हर संकट मेटण हार।।

 

नमो óब-व्यापक अंग अनंग,

नमो निस बासर-रैण निहंग।।

नमो अण रेह अनेह अनंत,

नमो अण देही व्यापक अंत।।

 

नमो निरलेप नमो निरकार,

नमो निरदोस नमो निरधार।।

निरग्गुण नांम नमो तुव नाथ

सगूण सरूप नमो समराथ।।

 

नमो प्रहलाद तणा प्रतिपाळ,

नमो ससि सूरज जोत सिंगाळ।।

नमो करूणाकर रूप कंठीर,

नमो वर-लाछ तणंा रघुवीर।।

 

नमो नर स्यंदन हांकण हार,

सबै दळ कौरव करण संहार।।

नमो क्रत काळ तणां दसकंध,

नमो बहु देव छुडावण बंध।।

 

नमो हरि लीलाय उतम नांम,

सोहं अवतार नमो सियरांम।।

विसन्न नमो तुझ आद विभूूत,

कुण जांणै तूझ तणी करतूत।।

 

नमो निरकार नमो निर्वांण,

नमो निर पग्ग नमो निर पंाण।।

नमो निर पक्ख नमो निरप्रेह,

नमो निर दक्ख नमो निरदेह।।

 

नमो निर क्रत्य नमो निर कांम,

नमो निर्जीत नमो निर्याम।।

नमो निरभूप नमो निर भेख,

नमो निर रूप नमो निर रेख।।

 

नमो अचुतानंद गोविन्द अज्ज,

नमो वरखा हुंत राखण ब्रज्ज।।

नमो सिध जोगिय संकर सेस,

नमो ब्रज ईस नमो नट वेस।।

 

नमो तु गोविन्द नमो तु गोपाल,

नमो गिरधारिय नंद गुवाल।।

नमो बलदेव नमो ब्रज बाल,

नमो दुख भंजण दीन दयाळ।।

 

नमो नंदनंद नमो नंदनेस,

नमो ब्रजचंद नमो ब्रजदेस।।

नमो जदुनाथ बळिभद्र जोड़,

रिणायर वास नमो रण छोड़।।

 

नमो पुरसोतम त्रीक्रम प्रम्म,

नमो मरजाद अखंड निगम्म।।

नमो सतरूघण भरत सनेह,

नमो अवगत भगत अछेह।।

 

नमो कुंभेण तणा भुज काळ,

नमो खळ राकस कुल खैंगाळ।।

नमो रघुवंस तणा रिव रांम,

विधूंसण लंक वडा वरियांम।।

 

नमो दुजपंख विजै रथ धज्ज,

गुणेह अतीत लखन्न-अग्रज्ज।।

नमो प्रभु सायर बांधव पाज,

नमो रण रांवण रोळण राज।।

 

नमो दुजरांम दमोदर देव,

नमो गुरू द्रोण करण्ण गंगेव।।

नमो वपु वांमण दीरघ वीख,

भिखंग पुरंदर भंजण भीख।।

 

नमो नारसिंह लखम्मीय नाह,

विसंभर वीठळ आद वराह।।

नमो मछ माधव कच्छ कुरम्म,

पतीत उधारण देव परम्म।।

 

नमो गुरू आद प्रसन्निय ग्रभ्भ,

नमो रघुराज कपिल्ल रिखभ्भ।।

नमो गुरू नारद ब्रह्म-गिनांन,

नरायण जोगिय जोग-निधान।।

 

नमो सिध संकर भांजण सूळ,

मुरार मुकंद महातत्त मूळ।।

नमो नित नांम अमीय निखात,

त्रिविध अतीत प्रदूमन-तात।।

 

नमो सिध-साधक सेव सुरेस,

नवे कुळ नाग पयाळ नरेस।।

नमो स्रब्ब व्यापक अंग अनंग,

नमो निस-वासर रैण निहंग।।

 

महागज ग्राह छुड़ावण मंत,

सनातन पाळक केवळ संत।।

भगत स भूधर भंाजण भीड़,

प्रजाळहु देव अमांणिय पीड़।।

 

नमो प्रम क्रम्म नमो प्रम काम,

नमो प्रम ध्रम्म नमो प्रम धाम।।

नमो परमातम आतम पाण,

नमो पुरसोतम नाम प्रमाण।।

 

नमो पर ब्रह्म नमो पर भ्रत,

नमो परक्रम्म नमो परक्रत।।

नमो प्रम पग्ग नमो प्रम पाण,

नमो प्रम अंक नमो प्रम आण।।

 

त्रिविध त्रिजग्ग त्रिविक्रम तार,

चतुरभुज आतम चेतन सार।।

बळिभद्र-बंाधव गोकुळ-बाळ,

खिंमावंत साधव दुस्ट-खँगाळ।।

 

गोविंद भगत निवारण ग्रभ्भ,

परम अमीय जुत पद प्रभ्भ।।

सदा उनमद जोगाणंद सिद्ध,

वय तन बाळ न जोबन व्रद्ध।।

 

उथाप सथाप बृहम्माय इंद,

चतुरभुज भंाज घड़ै रवि चंद।।

भुवन्न त्रणै-नर देव भुजंग,

प्रमेसर तोराय कीट पतंग।।

 

सच्चिदायनंद अतीत संसार,

विभू अतुळीबळ प्रम्म विचार।।

धरम्म करम्म परम्म सुथंाम,

रहीत सबद सु केवल रांम।।

 

जाण्यौ तव रूप कयो नंह जाय,

मिली जिम मूक सिता मुख मांय।।

पमै कुण पार तोरा परचंड,

वसै प्रति रोम विसै ब्रहमंड।।

 

तनां मध आद प्रपूरण अंत,

सनक्क सनातन जांणत संत।।

तुही सब काळ तुही सब देस,

निगम्म अनंत करै निरदेस।।

 

सथापण ध्रम्म प्रकासण सब्ब,

गापाळ असुर उतारण ग्रब्ब।।

अनाप-सनाप अनूप अछेह,

दयाळ मुरत विवरजित देह।।

 

बिना वप रूप अनंत विथार,

अमूळ विसव्व- विरक्ख अधार।।

प्रछन्न प्रतक्ख प्रधान-पुरक्ख,

अगोचर हेक अनेक अलक्ख।।

 

समांणउ मांहि हुयउ सुख सांत,

भरम्म दुआळ छुटै जग-भ्रांत।।

सथीरण सत अणंद सचेत,

गोविंद गहीर तु ग्यांन रूपेत।।

 

समाणउ तूझ मंहि सुख सांत,

वंछै वह सांम करां जिहि वात।।ं

सेवग्ग पयंपै तूझ समोह,

विसन्न रखे हिव थाय विछोह।।

 

अमाप कळा बिंद नाद उदास,

नमामिय भूत सरब्ब-निवास।।

प्रक्रत अतीत पुरक्ख पुराण,

अखंडित ग्यांन परम्म अघ्राण।।

 

प्रथव्विय कारण तारण प्रभ्भ,

सबै जग द्रव्व वियापक स्रब्ब।।

उपत खपत प्रकर्त असंग,

सरोज सुलोचन धु्रव स्रीरंग।।

 

अखिल तपोनिध त्रीगुण ईस,

अजीत जराम्रत जोग अधीस।।

विसव्व विमोह विसन्न विग्यांन,

रती पति-तात प्रकर्त राजांन।।

 

दाखै किव सेवक ईसरदास,

प्रमेसर टाळजै जामंण पास।।

आखै हिव ईसर तेज-अंवार,

प्रभु टाळो मुझ जम्म प्रहार।।

 

पितामह सब्ब ब्रह्ममाय पित्त,

कथै विधना विध-विध सुक्रीत।।

स्री रंग अनंत करे तुव सेव,

भगत दयाळ दहि तहि भेव।।

 

ग्रहै बिन पांण अपाव गवन्न,

अलेखत रूप सोहो अन अन्न।।

मुनेस महा चित अंतर मंझ,

प्रचंड महा बळ तेजस-पुंज।।

 

दीठो तउ गत न बूझव देव,

अगम्म अगोचर तोर अवेव।।

लख्यौ तउ पार लहां न अलक्ख,

नवै खंड मंझ दिखाड़िय नक्ख।।

 

उळक्खिय हूं-तूं आप हि आप,

बुझां हिव तूझ बियां नंह बाप।।

जड़यो तउ पार न जांण सुजांण,

विसन्न तुहाळा कोट विनांण।।

 

दधी लहरी जळ हेक न दोय,

हरि तिम तूझ विसै जग होय।।

मुकंद लहै कुण ताहरो म्रम्म,

अणु मझ दाखव कोटि अलम्म।।

 

समांणउ सांमिय मांहि सरीर,

गोविन्द गदाधर गयांन गहीर।।

प्रगट्टिय अंतर पूरख प्रांण,

आदेस करै सह आपहि आंण।।

 

अबाळ अब्रद्ध अकाल अक्रम्म,

अपाळ अलद्ध अभाळ अभ्रम्म।।

अचाळ अरद्ध अनाळ अनेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

अलेह अदेह अनेह अनाम,

अरेह अछेह अगे्रह अगाम।।

अक्रेह अपे्रह अखेह अखेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

जाम अयाम अबाध अपक्ख,

अठाम अगाम अधाम अलक्ख।।

अनाम अकाम अवास अवेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

अमंग अपंग असंन असंग,

अरंग अजंग अनंत अबंग।।

अभंग अलिंग अद्रंग अदेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

 

वदे इम ईसर स्रब्ब वियाप,

जुवो जनि थाय अजप्पा जाप।।

अजपाय जाप तणो तु अधीस,

अजंपा माहरो आतम ईस।।

 

नहीं तुव नाम नहीं तुव नेम,

नहीं तुव अंतर पे्रम अपे्रम।।

नहीं तुव गुज्ज नहीं तुव जांण,

नहीं तुव मांण नहीं तुव दांण।।

 

पयंपत ईसर जोड़िय पांण,

क्रपाल करो हिव मूझ कल्याण।।

दिखावउ तूझ अनूप दीदार,

स्ंासारह बाहर मांहि संसार।।

 

बूझै कुण नाथ तुहाळा बंग,

सकत्ति न रूद्र मूरत्ति न लिंग।।

करंताय कालाय-वाळीय क्रीत,

चतुर्भुज रूड़ी मानोय चीत्त।।

 

अलख पुरस आदेस, अमर नर नाग उपावण,

संत भगत साधार, चार ही खांण चलावण।

धर अंबर ढंक्कियण, वेद ब्रह्मा विसतारण,

त्रिभुवन तारण-तरण, सरण असरण साधारण।

 

घण घणा घाट भंजण घड़ण, विश्व ईस संाभळ वयण।

‘ईसरो‘ कहै असरण-सरण, नमो नाथ तो नारायण।।

आदि अंत आदेस, अलख आदेस अनंतर,

अंग-अलख आदेस, अगम आदेस अप्रंपर।

अेक तूझ आदेस, जगतगुरू जोग जोगेसर,

निरविकार आदेस, नेति आदेस नरेसर।

नमो अदिस आदेस नूं, गुण जपै ‘ईसर‘ गुणी।

आदेस अलख इक तुझ तूं, नमो नाथ त्रि.भुवन तणी।।

 

आदि पुरूस आदेस, मात बिण तात सपन्नो,

धात जात बिण ध्यान, आप ही आप उपन्न्नो।

रूप रेख बहु रंग, ध्यान जोगेसर ध्यावे,

अमर क्रोड तेतीस, प्रभु तव पार न पावे।

अल रचण त्रिगुण सिवसक्ति अज, अलख निरंजण आप हुव।

घण घणा घाट भांजण घड़ण, आदि पुरूस आदेस तुव।।

अलख पुरूस आदेस, आदि जिण जगत उपाया,

अलख पुरूस आदेस, बिसद बैकुण्ठ बसाया।

अलख पुरूस आदेस, धरातल अंबर धरिया,

अलख पुरूस आदेस, सेवतां सेवक तरिया।

आदेस करो इण नाम नै, जो जोनी संकट हरे।

आदेस अहोनिस अलख नै, कर जोड़ी ‘ईसर‘ करै।।

 

नमो निरंजन नाथ, पार कुण तोरा पम्मे,

निगम कहै गम नांय, देह जोगेसर दम्मे।

नाथ नवे-कुळ नाग, चरण रज सीस चढावे,

गौरि गंगा गायत्रि, गुण थारा सह गावे।

सब धांम प्राग तीरथ सबै, चंद रवी पूजै चरण।

कर जोड़ दास ‘ईसर‘ कहै, नमो नमो नारायण।।

 

ब्रह्म वेद उच्चरे, बीण तुम्मर बजावे,

रंभा अवसर रचे, गीत सुरसती गावै।

व्याास कीरत विसतरै, सक्र सिर चम्मर ढाळै,

सिव आलोचन करै, पाव गंगा सु पखाळै।

सस सोळ कळा अम्त स्रवे, सूरज जोत सुभ्भ धरै।

अेकत्र नाथ सुर निस अहो, कमला तुव आरति करै।।

 

वासुदेव परब्रह्म, परम आतम परमेस्वर,

अखिल-ईस अणपार, जगत जीवन जोगेस्वर।

निरालम्ब निरलेप, अनंत ईसर अविनासी,

थावर जंगम थूळ, निखिल जग सुछ्म निवासी।

दाळद-पाप-संताप दह, पारस संगम लोह पर।

निज नाम नमो नारायणा, हंस नमो सरताज हर।।

 

सेस अनंतसिव सगत, ग्यांन कर निस दिन गावै,

अनंत वेद इन्द्र अज, कीरती तोर कहावै।

अनंत कोट अवधूत, महा तपसी वन मांही,

भजै अनंत सस भांण, पार जस कोउ न पाही।

दिगपाळ देव दानव सकळ, सुगुण कथत तोरा सबै।

किण भंात बिया प्राक्रत कवि, चत्रभुज थारा गुण चवै।।

 

जेण सद जीवंत, चर अचर चार-खांणी,

जेण सद जीवंत, व्रह्माण्ड सकल चत्र वांणी।

जेण सद जीवंत, मोर चात्रक्क बबीहा,

जेण सद जीवंत, सिद्ध साधक बहु दीहा।

जीव चा सबद सुण जीवडा, महियळ जळ थळ मंझळी।

अलख पुरूस अपरम परम, जळहर सद सु संभळी।।

 

सिंघासन धर सोह, करत वींजण समीर कर,

उदभिज भार अढार, पुहुप धर परिमळ पर।

छांह धरत घन छत्र, करै संकर कीरती,

ऊतारत निसि अहर, अरक ससिहर आरति।

धुनि करै वेद मंगळ धवळ, ग्रह तुम्मर गावंत गुण।

मानवी ताहरी महमहण, करइ सेव रिझवै कवण।।

 

असरण सरण अभंग, परम मोहादि पनंगह,

संकर ब्रह्म सगत, अखिल गण-ईस अनंगह।

मंगळ बुद्ध मयंक, तरण-तन सुकर गुरू तित,

राह केत रथी-अरण, नवग्रह सांति करे नित।

पूरण पूनीत स्र.ीराम पद, विघन हरण त्रयलोक वर।

परिणांम हेत ‘ईसर‘ पुणै, ततह नांम भव सिंधु तर।।

 

प्रगट नांम परताप, वास वैकुंठ वसायो,

प्रगट नांम परताप, दूत जम त्रास दिखायो।

प्रगट नांम परताप, चंड भागै चैरासी,

प्रगट नांम परताप, उर नंह रहे उदासी।

रांम रौ नांम प्राणी रटै, तासूं जळ पाथर तरै।

धर ध्यांन ‘ईसरा‘ संकधर, अजु राम मुख उच्चरै।।

 

त्रीकम पुरसोतम, रूप हे महा मनोहर,

हरि वांमन हयग्रीव, धनुस धारण फरसुधर।

निकळंक गोपी नाथ, पतित पावन प्रमोदघण,

माधव साळगराम, अनंत नाम ज नारायण।

त्रय लोक नाथ तारण-तरण, साहब वलि भद्र संभरै।

धर ध्यांन ‘ईसरा‘ संक धर, रांम नांम मुख उच्चरै।।

 

जनम पीड़ जगदीस, ईस अवतार न आणे,

छळ बळ करि छोडवण, जनम आपण कर जाणे।

भणें नाम हंू भणिस, जोति जगति जग दीसै,

क्रपा साधना करण, तवन क्रोड़ी तेंतीसै।

द्रग देव दिनंकर, ससि दुवै, त्रिगुणनाथ तारण तरण।

‘ईसरो‘ कहै असरण-सरण, किसूं तूझ कारण-करण।।

 

निराकार निरलेप, अगम जांणै स्त्रुति सिव अज,

अनंत वार अवतार, करै भूधर भगतां कज।

जयति जयति जग जीव, बिड़द राखण बद्रीपत,

अगम सुगम कर अमर, संत सहायक छळ खळ हत।

गत प्राक्रम तोरा को गिणै, नामै नर नारी सहै।

ग्रभवास पास आवै नहीं, कर जोड़ी ‘ईसर‘ कहै।।

 

रांम नांम परताप, हणूं दूणागिर लायो,

रांम नांम परताप, इंद्र इंद्रासण पायो।

रांम नांम परताप, धुरू अवचळ हुय रहियौ,

रांम नांम परताप, पांडु कुळ नकलंक कहियौ।

रांम रौ नांम रटतां रसण, अनंत भगत जन उद्धरै।

धर ध्यांन ‘ईसरा‘ ंसंक धर, अजु राम मुख उच्चरै।।

 

मात उदर नव मास, रूदत ऊंधे सिर रहियौ,

तद पायो नर तन्न, संकटां बहु विध सहियौ।

पसु जेम रह पेट, सोण मळ मू़त्र्ा सु खायो,

भज्यो नहीं भगवान, गाढ सुख मूळ गमायो।

जगदीस भजन जांण्यों नहीं, धायो धर धंधो करै।

धर ध्यांन ‘ईसरा‘ संक धर, अजों रांम मुख उच्चरै।।

कीध नहीं केदार, प्राग जमना नहीं पायो,

सेत बंध रामेस, भटकतो भूम न आयो।

गया न न्हायो गंग, दांन कुरछेत न दीधौ।

जुहारयो न जगदीस, कर्म भव-बंधन कीधौ।

तन पाय सुभग मानव तणों, पे्रम न अंतर पाइयो।

‘ईसरो‘ कहे रे आतमा, गोविन्द गुण नंह गाइयो।।

 

कसा करव हों महल, महल गिरमेर कहावै।

कसा गाव हों गुण, गुणब ज्यां तुम्मर गावै।

मेल्हां की धन माल, सिरीजी चरणां आगै,

कसा पखाळा पांव, पवित नख गंगा लागै।

की पुहप चढावां सिर परै, पारिजात व्रख तूझ घरै।

राजाधिराज की रीझवां, कवि संकर सेवा करै।।

 

राखै ज्युं त्यंु रहां, जहां निरमै त्यां जावां,

हुकम तणा वस हुवै, जको सिरि गिरा जणावां।

कांम लोभ मद क्रोध, मोह वड सब जग मांही,

तूं ही मार जीवाड़, परम तंतर तुव पांही।

ध्यांन कर नजर तोसूं धरै, सो निवांण जग विस्तरै।

राजाधिराज तोरी रजा, ‘ईसर‘ रा सिर ऊपरै।।

 

अनळ जळ थळ अनंत, थयो रूप धर थंबळ,

कमल वदन मुख कमल, पवित जळ गंग हळाबळ।

अखिल उद्धारण अचल, वसै रोम रोम ब्रहमंडल,

पाड़ण गिर जल प्रघळि, मने नाम जन मंगळ।

चित हूंत चपलि जुगल करि, नर नारायण तूझ निरमळ।

आदेस विसन अवगत अलख, वहै जुग जाये अेक पळ।।


अमर मेर आधार, मेर वसुधा आधारे,

धरा सेस आधार, सेस कुरम साधारे।

कूरम जळ आधार, नीर सु अनिल अधारे,

अनिल जळ आधार, सक्ति करतार सधारे।

करतार सदा निरधार ही, कवि म राच दूजा करम।

आप ज करंतां आप फळ, आपहि विलसे यह मरम।।

 

मणां तेल तिल मांय, वास जिम पुहप विराजत,

रंग मजीठ सु सहत, सबद अरथादिक साजत।

वेळा सायर वसत, दारू मझ अगन दिखावत,

पयस मांझ घ्रत पूर, ईख मधु रस उपजावत।

वलि दाहकता पावक विसे, साधुजन सोहै सहण।

‘ईसरो‘ भणै त्यूं ही अवस, मो मन बसियो महमहण।।

 

राम किसन नारायणा, सचिदानंद गोविंद।

वासुदेव वीठळ विभु, नरहर गोकळ नंद।।

वारयौ फेरयौ नांव पर, किया ज राई लूंण।

जिना चलावै पंथ सिर, तिना भुलावै कूंण।।

 

नर तो कुछ करता नहीं, करता सब करतार।

देखो करता क्या करै, रख बंदा इतबार।।

 

बंदा बहोत अधीर है, तिल भर नहीं करार।

राखै साहिब तो रहै, बंदा का इतबार।।

 

हरिरस सूं सब सुख हुवे, हरिरस सूं सब ध्यांन।

हरिरस सूं नव निधि-हुवे, हरिरस रूप निधांन।।

 

सकळ हरीरस सोध सुभ, वांणी अरथ विचार।

सुणतां फळ प्रामै सदा, जे सूझै तत सार।।

 

तनक भणक हरिरस तणी, कढत प्रंाण सुण कान।

महापाप सह मौचवै, आगे जनम न आन।।

 

हरिरस सूं सुध-बुध हुवै, कस्ट न व्यापै कोय।

हरिरस सूं सदगत सदा, लहै सकल नर लोय।।

 

सरब रसायण मे सरस, हरिरस समो न कोय।

हेक रती घट संचरै, सह घट कंचन होय।।

 

हरिरस रौ गुण सरस है, जो कोई पीवै जास।

पीवै सो अम्मर पदे, दाखै ईसरदास।।

 

हरिरस हर रस ईक है, अनरस अनरस मान।

बिन हरिसर भगति बिना, जनम व्रथा नर जान।।

 

किव ईसर हर रस कथ्यो, सुदिह तीन सो साठ।

महा दूठ प्रामै मुगत, प्रत-नत कीजै पाठ।।

 

{छंद म¨तीदाम}

मुणी हों ख्यात महारिय मत,

गोविन्द न जांणव तोरिय गत।।

भणै भगवान करूं गुण भेट,

महा ग्रभवास तणा गुख मेट।।

 

मंाग्यो हों सरब दियो तैं मूझ,

तुहारिय गत मांगू कन तूझ।।

मांगू मन वाच करम्म मुरार,

नरायण जंामण-मरण निवार।।

 

हरिरस रो रस लेत हमेस,

लागै नंह काळ भय लवनेस।।

जपै कव ईसर दुइ कर जोड़,

कथंतांय पाप कटै दुख क्रोड़।।

 

अेको रसणाह लहूं किम अंत,

पार नंह पावत सेस पुणंत।।

न जाणूं य तोराय पार नरेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।